
भारतीय संविधान का भाग 2 – नागरिकता .
(Part II – Citizenship)
जब हम कहते हैं “मैं भारतीय नागरिक हूँ”,
तो यह सिर्फ एक वाक्य नहीं होता – यह एक पहचान, एक अधिकार, और एक कर्तव्य का ऐलान होता है।
लेकिन सवाल यह है –
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब कौन भारतीय था?
किसे भारत का नागरिक माना जाए और किसे नहीं?
क्या सिर्फ भारत में पैदा होना काफी था, या कुछ और शर्तें भी थीं?
संविधान का भाग 2 इन्हीं सवालों के जवाब देता है।
नागरिकता क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि किसी भी राष्ट्र का पहला सवाल होता है –
“मेरे अपने कौन हैं?”
जो व्यक्ति राष्ट्र का “अपना” होता है – वही
- मतदान कर सकता है,
- सरकारी नौकरी पा सकता है,
- राजनीति में हिस्सा ले सकता है,
- और संविधान द्वारा प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों का पूरा लाभ उठा सकता है।
दूसरे शब्दों में –
नागरिकता ही वह “पासपोर्ट” है जो व्यक्ति और राष्ट्र के बीच संबंध बनाता है।
इतिहास का संदर्भ
भारत की आज़ादी के समय उपमहाद्वीप बँट चुका था –
भारत और पाकिस्तान दो अलग देश बन चुके थे।
लाखों लोग सरहद के इस पार से उस पार जा चुके थे।
ऐसे में यह तय करना बहुत जटिल था कि
“कौन भारतीय है, कौन पाकिस्तानी?”
इसी ऐतिहासिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए
संविधान के भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) में
नागरिकता से जुड़ी स्थितियों को साफ़-साफ़ परिभाषित किया गया।
इस भाग में क्या मिलेगा?
संविधान के भाग 2 में नागरिकता से जुड़े पाँच मुख्य अनुच्छेद हैं:
- अनुच्छेद 5: प्रारंभिक नागरिकता – कौन भारत का नागरिक था 26 जनवरी 1950 को?
- अनुच्छेद 6: पाकिस्तान से आए प्रवासियों की नागरिकता
- अनुच्छेद 7: पाकिस्तान गए और लौटे लोगों की स्थिति
- अनुच्छेद 8: विदेशों में रहने वाले भारतीयों की नागरिकता
- अनुच्छेद 9-11: विदेशी नागरिकता, संसद के अधिकार
संक्षेप में:
भाग 2 भारत के लिए यह तय करता है कि
“कौन मेरा है?”
और यही तय करता है कि किसे भारत में पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे।
अनुच्छेद 5: वह संवैधानिक धागा जो भारत के नागरिकों को जोड़ता है
जब 26 जनवरी 1950 की सुबह भारत ने अपना संविधान लागू किया, तो यह केवल क़ानूनों की शुरुआत नहीं थी — यह एक नए राष्ट्र की आत्मा की उद्घोषणा थी। और इस आत्मा का सबसे पहला प्रश्न यही था —
“अब भारत का नागरिक कौन है?“
इसी ऐतिहासिक सवाल का उत्तर देता है भारतीय संविधान का अनुच्छेद 5, जो नागरिकता की पहली परिभाषा प्रस्तुत करता है।
अनुच्छेद 5 का सार — किसे माना गया भारत का नागरिक?
अनुच्छेद 5 उन लोगों को भारत का नागरिक घोषित करता है, जिनका भारत से जन्म, वंश या निवास के ज़रिए गहरा संबंध था। यह अनुच्छेद संविधान लागू होने के समय (यानि 26 जनवरी 1950) भारत की नागरिकता की स्थिति को स्पष्ट करता है।
संविधान की शब्दावली में अनुच्छेद 5:
“इस संविधान के प्रारंभ में, हर वह व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और —
(क) जो भारत में जन्मा है, या
(ख) जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा है, या
(ग) जो संविधान लागू होने से ठीक पहले कम से कम पाँच वर्षों से भारत में निवास कर रहा है —भारत का नागरिक माना जाएगा।”
सरल शब्दों में समझें: अनुच्छेद 5 की तीन मुख्य शर्तें
आधार | विवरण |
---|---|
अधिवास (Domicile) | व्यक्ति भारत को स्थायी रूप से अपना घर मानता हो |
जन्म या वंश | (i) व्यक्ति भारत में जन्मा हो, या (ii) उसके माता या पिता भारत में जन्मे हों |
निवास (Residence) | व्यक्ति संविधान लागू होने से पहले कम से कम 5 वर्ष भारत में रह चुका हो |
‘अधिवास’ शब्द का महत्व:
यह सिर्फ़ “रहना” नहीं है —
यह किसी देश को अपना स्थायी ठिकाना मानने की मानसिकता है।
संविधान निर्माताओं ने स्पष्ट किया कि नागरिक वही कहलाएगा जो भारत को “मातृभूमि” समझता है, न कि केवल “रहने की जगह”।
अनुच्छेद 5 क्यों ऐतिहासिक था?
विभाजन की पीड़ा, लाखों शरणार्थियों का विस्थापन, और सीमाओं के आर-पार भागते लोगों के बीच यह तय करना जरूरी था कि भारत किसे ‘अपना’ मानेगा।
अनुच्छेद 5 ने भावनाओं और संवैधानिक विवेक का अद्भुत संतुलन बनाकर यह सवाल सुलझाया।
संक्षिप्त चार्ट: अनुच्छेद 5 एक नजर में
पहलू | विवरण |
---|---|
लागू कब होता है? | 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने पर |
किसे नागरिक माना गया? | अधिवास + (जन्म / माता-पिता / 5 वर्षों का निवास) |
प्रभाविता | यह केवल संविधान लागू होने के दिन पर लागू होता है |
बाद की नागरिकता व्यवस्था | नागरिकता अधिनियम, 1955 द्वारा निर्धारित |
अनुच्छेद 5 और नागरिकता अधिनियम 1955 का संबंध
अनुच्छेद 5 एक स्थायी नागरिकता कानून नहीं है, बल्कि यह संविधान के प्रारंभ में नागरिकता की स्थिति को परिभाषित करता है।
इसके बाद जो भी नागरिकता संबंधी नियम बने, वे भारतीय संसद द्वारा पारित नागरिकता अधिनियम 1955 और उसके संशोधनों के तहत आते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- अनुच्छेद 5 ने लाखों शरणार्थियों को नागरिकता का संवैधानिक आधार दिया।
- यह भारतीय संविधान के भाग 2 (नागरिकता) का पहला अनुच्छेद है।
- यह एक ट्रांज़िशनल अनुच्छेद है — स्थायी नहीं, लेकिन नींव का काम करता है।
- इसमें कहीं भी धर्म का उल्लेख नहीं है — यह पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष मानदंड पर आधारित है।
अनुच्छेद 5 केवल एक अनुच्छेद नहीं है — यह उस ऐतिहासिक क्षण का दस्तावेज़ है जब भारत ने यह तय किया कि “हमें कौन चाहिए?”
यह भारत की न्यायप्रियता, गंभीरता, और समावेशी सोच का प्रतीक है।
तो जब भी आप अपने “भारतीय नागरिक” होने पर गर्व करें, एक पल के लिए अनुच्छेद 5 को याद करें —
वहीं से शुरू हुई थी आपकी और इस देश की साझी कहानी।
अनुच्छेद 6: जब देश बंटा, तब संविधान ने जोड़ा!
26 जनवरी 1950 – भारत के संविधान ने जब अपना पहला श्वास लिया, तब यह देश सिर्फ़ एक आज़ाद राष्ट्र नहीं था, बल्कि एक जख्मी इतिहास की गोद में जन्मी उम्मीद था।
विभाजन की आग में झुलसे लोग अपने घरों से उजड़ चुके थे। एक तरफ़ पाकिस्तान बना, दूसरी ओर लाखों लोग अपनी पहचान खोकर भारत में शरण लेने आ गए।
अब सवाल यह था —
“क्या ये शरणार्थी भारत के नागरिक माने जाएंगे?”
और इसी सवाल का जवाब था — अनुच्छेद 6।
अनुच्छेद 6: कौन हैं ये लोग?
अनुच्छेद 6, उन व्यक्तियों के लिए है जो भारत के विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आए थे और जिन्होंने भारत को अपना स्थायी घर बना लिया।
यह अनुच्छेद स्पष्ट करता है कि:
“वह व्यक्ति जो 19 जुलाई 1948 से पहले पाकिस्तान से भारत आया, और जिसका भारत में अधिवास है, वह भारत का नागरिक होगा।”
और यदि कोई व्यक्ति 19 जुलाई 1948 के बाद भारत आया, तो उसे सरकार द्वारा जारी किया गया प्रवासन प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
क्यों है 19 जुलाई 1948 की तारीख इतनी खास?
यह वह तारीख है, जब भारत सरकार ने ‘Inward Migration Scheme’ लागू की थी। इस स्कीम के तहत अब किसी को भारत की नागरिकता तभी दी जाती थी जब:
- वह भारत आने से पहले रजिस्ट्रेशन कराए, और
- भारत में आने के बाद प्रवासन अधिकारी से प्रमाणपत्र प्राप्त करे।
अनुच्छेद 6 की शर्तें – आसान भाषा में
शर्त | विवरण |
---|---|
1. अधिवास (Domicile): | व्यक्ति का भारत में स्थायी रूप से बसना ज़रूरी |
2. पाकिस्तान से आया हो: | उसका पहले का निवास पाकिस्तान में रहा हो |
3. दो प्रमुख स्थितियाँ: | (i) यदि 19 जुलाई 1948 से पहले आया = नागरिक |
(ii) 19 जुलाई 1948 के बाद आया = नागरिकता प्रमाणपत्र ज़रूरी |
एक कहानी जो अनुच्छेद 6 को समझाए
जसवंत सिंह, 1947 में लाहौर से अपने परिवार समेत अमृतसर आए। उन्होंने विभाजन के दौरान सब कुछ खो दिया — ज़मीन, रिश्तेदार, सपने।
लेकिन उन्हें भारत में आश्रय मिला, और संविधान के अनुच्छेद 6 ने उन्हें दिया एक नई पहचान —
“भारतीय नागरिक”।
अनुच्छेद 6 की ऐतिहासिक भावना
इस अनुच्छेद ने केवल नागरिकता नहीं दी,
बल्कि विभाजन से पीड़ित करोड़ों लोगों को अपनाने का भरोसा भी दिया।
संविधान निर्माताओं ने पूरी संवेदनशीलता से यह समझा कि कोई अपना वतन छोड़कर मजबूरी में भारत आया है, तो उसे यहाँ पराया नहीं माना जा सकता।
अनुच्छेद 6 और धर्म का सवाल?
ध्यान रहे — अनुच्छेद 6 में कहीं भी धर्म का ज़िक्र नहीं किया गया है।
हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई – अगर वे पाकिस्तान से भारत आए और उपयुक्त शर्तें पूरी करते हैं, तो उन्हें भारतीय नागरिक माना गया।
क्या अनुच्छेद 6 आज भी लागू होता है?
नहीं। यह एक ट्रांज़िशनल प्रावधान था, जो केवल संविधान लागू होने के समय की स्थिति को तय करता है।
आज नागरिकता संबंधी मामलों में “नागरिकता अधिनियम 1955” और उसके संशोधन लागू होते हैं।
अनुच्छेद 6 और नागरिकता अधिनियम 1955
पहलू | अनुच्छेद 6 | नागरिकता अधिनियम 1955 |
---|---|---|
प्रभाव का क्षेत्र | केवल 1950 के आसपास पाकिस्तान से आए लोग | सभी भारतीय नागरिकता संबंधी मामले |
स्थायी प्रावधान? | नहीं | हाँ |
धर्म आधारित? | नहीं | नहीं (हालांकि संशोधनों के बाद बदलाव आए हैं) |
अनुच्छेद 6 – संविधान की करुणा की मिसाल
जब इतिहास ने सरहदें खींचीं, तो संविधान ने उन्हें पाटने की कोशिश की।
अनुच्छेद 6 केवल एक तकनीकी प्रावधान नहीं था — यह एक करुणा भरा आलिंगन था, उन लोगों के लिए जिन्होंने सब कुछ खो दिया लेकिन भारत को चुना।
यह अनुच्छेद हमें सिखाता है कि एक राष्ट्र सिर्फ़ सीमाओं से नहीं, बल्कि “अपनों” से बनता है।
अब आइए जानते हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 7 की कहानी — एक ऐसा अनुच्छेद जो एक ही धरती के दो टुकड़ों में बंटे लोगों की किस्मत को तय करता है।
अनुच्छेद 7: जो भारत से गया, क्या वह फिर से भारत का हो सकता है?
1947 — विभाजन।
लाखों लोग इधर से उधर हुए। कुछ लोग पाकिस्तान से भारत आए, और कुछ भारत से पाकिस्तान चले गए।
अब सवाल था —
“जो लोग भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए, क्या वे अब भी भारत के नागरिक रहेंगे?”
यही सवाल हल करता है — अनुच्छेद 7।
अनुच्छेद 7 क्या कहता है?
“वह व्यक्ति जो 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान गया और वहाँ की नागरिकता प्राप्त कर ली, वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा।”
लेकिन रुकिए! इसमें एक मानवता भरी छूट भी है:
अगर कोई व्यक्ति पाकिस्तान गया था, लेकिन 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में वापस आकर प्रवासन अधिकारी से प्रमाणपत्र प्राप्त कर ले, तो वह भारत का नागरिक माना जाएगा।
दो पहलू — एक अनुच्छेद
स्थिति | नागरिकता स्थिति |
---|---|
भारत से पाकिस्तान गया और वहीं बस गया (पाकिस्तान की नागरिकता ले ली) | भारतीय नागरिक नहीं रहेगा |
पाकिस्तान गया लेकिन बाद में भारत लौटकर प्रमाणपत्र प्राप्त किया | भारतीय नागरिक माना जाएगा |
अनुच्छेद 7 को कहानी में समझिए
जकारिया खान, जो लुधियाना में रहते थे, 1947 में पाकिस्तान चले गए। वहाँ उन्होंने नागरिकता ले ली। लेकिन जल्द ही उन्हें महसूस हुआ कि भारत ही उनका घर था।
1949 में वे भारत लौटे और Migration Certificate प्राप्त किया।
अब वे भारत के नागरिक माने गए।
यही है अनुच्छेद 7 की भावना —
अगर कोई लौटना चाहे, तो दरवाज़ा बंद नहीं था।
अनुच्छेद 7 का मानवीय पक्ष
जहाँ अनुच्छेद 6 स्वीकार करता है, वहीं अनुच्छेद 7 निर्णय मांगता है।
आप कौन हैं — यह सिर्फ़ जन्म की बात नहीं है, बल्कि चयन (choice) की बात है।
अगर आप भारत छोड़कर पाकिस्तान को अपनाते हैं, तो आप भारतीय नहीं रहेंगे।
लेकिन अगर दिल और दस्तावेज़ दोनों के साथ लौट आए, तो भारत फिर से गले लगाता है।
धार्मिक भेदभाव? नहीं!
अनुच्छेद 7 ने धर्म के आधार पर किसी भेदभाव की बात नहीं की।
यह सिर्फ़ स्थानांतरण, निवास और नागरिकता प्राप्ति पर आधारित था —
हिंदू गया तो भी लागू, मुसलमान गया तो भी।
संविधान सभा की चिंता
संविधान सभा में इस अनुच्छेद पर गहरी बहस हुई थी। डॉ. अंबेडकर ने साफ़ कहा था कि —
“अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर पाकिस्तान की नागरिकता लेता है, तो वह भारत की निष्ठा छोड़ चुका है।”
लेकिन उन्होंने यह रास्ता भी खुला रखा कि यदि कोई व्यक्ति लौटे, तो प्रवासन प्रमाणपत्र लेकर नागरिकता फिर पा सकता है।
अनुच्छेद 7 आज के संदर्भ में
आज यह अनुच्छेद केवल ऐतिहासिक महत्व का है। अब नागरिकता के निर्णय नागरिकता अधिनियम, 1955 और बाद के संशोधनों के तहत लिए जाते हैं।
अनुच्छेद 7: एक नजर में
विशेषता | विवरण |
---|---|
लागू होता है | उन लोगों पर जो भारत से पाकिस्तान गए |
कब से | 1 मार्च 1947 के बाद |
प्रभाव | पाकिस्तान की नागरिकता लेने पर भारतीय नागरिकता समाप्त |
छूट | यदि वापसी के बाद प्रमाणपत्र ले लिया जाए, तो नागरिकता बहाल |
अनुच्छेद 7 – एक देश, एक द्वार, और एक निर्णय
अनुच्छेद 7 हमें याद दिलाता है कि देश की नागरिकता केवल दस्तावेज़ नहीं, निष्ठा का सवाल है।
यह बताता है कि देश छोड़ना एक चुनाव है, लेकिन वापस आकर देश को अपनाना भी एक अधिकार है — अगर शर्तें पूरी हों।
संविधान ने मोहब्बत का रास्ता कभी बंद नहीं किया, बस तय किया कि लौटना हो, तो वाजिब दरवाज़े से लौटो।
आइए अब जानते हैं भारतीय संविधान का एक और महत्वपूर्ण, लेकिन कम चर्चित अनुच्छेद — अनुच्छेद 8, जो उन भारतीयों की बात करता है जो विदेशों में रहते हैं, लेकिन भारत से भावनात्मक और वैधानिक रूप से जुड़े हुए हैं।
अनुच्छेद 8: विदेश में रहो, लेकिन दिल हिंदुस्तानी हो!
जब भारत आज़ाद हुआ, तब बहुत से भारतीय व्यापार, नौकरी या पढ़ाई के सिलसिले में विदेशों में बसे हुए थे। सवाल उठा —
“क्या ये लोग भी भारतीय नागरिक कहलाएंगे?”
यहीं से आता है अनुच्छेद 8 — उन लोगों की पहचान जो भारत से बाहर रहते हुए भी ‘भारतवासी’ हैं।
अनुच्छेद 8 क्या कहता है?
संविधान लागू होने के समय, कोई भी व्यक्ति जो भारत के बाहर रह रहा हो, यदि उसका या उसके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई भारत में जन्मा हो, और वह भारतीय दूतावास या उच्चायोग में खुद को भारत का नागरिक घोषित कर के रजिस्टर करवा ले — तो वह भारतीय नागरिक माना जाएगा।
इसे आसान भाषा में समझें:
शर्तें | विवरण |
---|---|
विदेश में रह रहा हो | व्यक्ति भारत के बाहर रह रहा हो |
वंशज भारत में जन्मा हो | उसके माता-पिता या दादा-दादी भारत में जन्मे हों |
दूतावास में रजिस्ट्रेशन | व्यक्ति ने भारतीय दूतावास/उच्चायोग में खुद को भारत का नागरिक रजिस्टर कराया हो |
एक उदाहरण से समझिए:
मान लीजिए, रामलाल का जन्म 1930 में भारत में हुआ था, लेकिन वे 1946 में केन्या चले गए और वहीं बस गए। उनका बेटा रमेश 1948 में केन्या में पैदा हुआ।
अब रमेश अगर चाहे कि वह भारत का नागरिक कहलाए —
तो उसे भारत के दूतावास में जाकर अपने को रजिस्टर कराना होगा।
अगर उसने यह कर लिया, तो अनुच्छेद 8 के तहत वह भारत का नागरिक होगा।
अनुच्छेद 8 का महत्व:
- यह प्रवासी भारतीयों (Overseas Indians) के लिए एक बड़ा सम्मान था।
- इसने यह संदेश दिया कि भारत की नागरिकता सीमाओं में नहीं, रक्त और भावना में बसती है।
- यह उन लोगों के लिए विकल्प खोलता है जो विदेश में रहते हैं, लेकिन अपनी जड़ें भारत में मानते हैं।
संविधान निर्माताओं का दृष्टिकोण:
संविधान सभा में जब यह अनुच्छेद आया, तब कई सदस्यों ने इसकी सराहना की। उनका मानना था कि भारत की पहचान केवल उसके भूगोल से नहीं, बल्कि उसके नागरिकों के दिल से बनती है — चाहे वे कहीं भी हों।
डॉ. अंबेडकर ने कहा था:
“विदेश में रहने वाले भारतीयों को यदि नागरिकता देनी है, तो एक स्पष्ट प्रक्रिया होनी चाहिए – अनुच्छेद 8 वही प्रक्रिया है।”
अनुच्छेद 8 और नागरिकता अधिनियम 1955 का संबंध:
अब भारत की नागरिकता संबंधी अधिकतर बातें नागरिकता अधिनियम, 1955 द्वारा नियंत्रित होती हैं।
अनुच्छेद 8 ने सिर्फ़ एक संवैधानिक आधार दिया, लेकिन आज अगर कोई प्रवासी भारतीय भारतीय नागरिक बनना चाहता है, तो उसे इस अधिनियम के तहत आवेदन करना होता है।
अनुच्छेद 8: एक नजर में
विषय | विवरण |
---|---|
किसके लिए | जो भारत के बाहर रहते हैं |
योग्यता | व्यक्ति, या उसके माता/पिता/दादा-दादी भारत में जन्मे हों |
प्रक्रिया | भारतीय दूतावास में खुद को भारतीय नागरिक के रूप में रजिस्टर कराना |
विशेषता | विदेशी रहवासियों को भारत की नागरिकता से जोड़ने वाला सेतु |
अनुच्छेद 8 एक भावनात्मक और वैधानिक पुल है —
“जहाँ दिल है हिंदुस्तानी, वहाँ संविधान ने भी रास्ता दिया है।”
यह अनुच्छेद हमें याद दिलाता है कि भारत सिर्फ़ एक भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और भावनात्मक संबंध का नाम है।
तो अगर आप भारत से बाहर हैं, लेकिन भारत आपके खून और संस्कारों में है, तो संविधान कहता है —
“आपका स्वागत है! भारतीय नागरिकता आपके लिए भी खुली है।”
बिलकुल! अब बात करते हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 की — जो दिखता तो छोटा है, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा और निर्णायक है।
अनुच्छेद 9: एक नागरिक, एक देश – भारत की साफ नीति!
जब भारत आज़ाद हुआ और संविधान लागू हुआ, तो सबसे बड़ा सवाल था —
क्या कोई व्यक्ति दो देशों का नागरिक बन सकता है?
दुनिया के कई देशों में दोहरी नागरिकता (Dual Citizenship) की अनुमति है, लेकिन भारत ने शुरू से ही इस पर सख्त रुख अपनाया — और इस नीति की नींव रखी अनुच्छेद 9 ने।
अनुच्छेद 9 क्या कहता है?
“कोई भी व्यक्ति, जो स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त करता है, वह भारतीय नागरिक नहीं रहेगा।”
इसे सरल भाषा में समझें:
अगर आपने खुद अपनी मर्ज़ी से किसी और देश की नागरिकता ली है —
तो आपकी भारतीय नागरिकता अपने आप समाप्त हो जाएगी।
भारत आपको दो नावों पर सवार नहीं देखना चाहता।
उदाहरण से समझिए:
- राहुल भारत में पैदा हुआ, लेकिन बाद में वह अमेरिका चला गया और वहां की नागरिकता ले ली।
अब चाहे उसका जन्म भारत में हुआ हो, या वह भारतीय पासपोर्ट रखता हो —
भारत की नजर में वह अब भारतीय नागरिक नहीं है। - दूसरी तरफ, अगर राहुल ने अमेरिकी नागरिकता नहीं ली, बस वहाँ रह रहा है या ग्रीन कार्ड होल्डर है,
तो वो अब भी भारतीय नागरिक माना जाएगा।
अनुच्छेद 9 क्यों ज़रूरी था?
जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तो लाखों लोग सीमा पार गए।
कुछ लोगों ने दोनों तरफ के लाभ उठाने की कोशिश की —
भारत में संपत्ति, पाकिस्तान में नागरिकता!
संविधान निर्माताओं ने तय किया:
“जो भारत को अपना नहीं मानता, भारत भी उसे नागरिक नहीं मानेगा।”
संविधान सभा में क्या चर्चा हुई थी?
संविधान सभा में कुछ सदस्य चाहते थे कि भारत भी अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता की सुविधा दे।
लेकिन डॉ. अंबेडकर ने साफ कहा:
“नागरिकता सिर्फ कानूनी नहीं, भावनात्मक और नैतिक निष्ठा का विषय है।
आप दो देशों के प्रति वफादार नहीं हो सकते।”
अनुच्छेद 9 और नागरिकता अधिनियम 1955:
अनुच्छेद 9 का व्यावहारिक विस्तार नागरिकता अधिनियम, 1955 में मिलता है,
जिसमें बताया गया है कि:
- कौन, कब और कैसे भारतीय नागरिकता खोता है?
- अगर आप विदेशी नागरिकता ले लेते हैं, तो आपका भारतीय पासपोर्ट अमान्य हो जाता है।
- भारत सरकार ऐसे व्यक्ति की नागरिकता रद्द कर सकती है।
OCI (Overseas Citizen of India): एक विशेष दर्जा
हालांकि भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता, लेकिन सरकार ने विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए एक व्यवस्था बनाई —
OCI कार्ड (Overseas Citizenship of India)
लेकिन ध्यान रहे — OCI कार्ड कोई नागरिकता नहीं है।
यह एक विशेष वीज़ा की तरह है, जिससे आप भारत में रह सकते हैं, निवेश कर सकते हैं, लेकिन वोट या सरकारी नौकरी नहीं ले सकते।
अनुच्छेद 9: एक नजर में
विषय | विवरण |
---|---|
किसके लिए | जो व्यक्ति स्वेच्छा से विदेशी नागरिकता ले लेता है |
प्रभाव | वह भारतीय नागरिक नहीं रहेगा |
दोहरी नागरिकता | भारत में मान्य नहीं |
कानून का आधार | भारतीय संविधान का अनुच्छेद 9 और नागरिकता अधिनियम, 1955 |
वैकल्पिक सुविधा | OCI (Overseas Citizen of India) – लेकिन यह नागरिकता नहीं है |
अनुच्छेद 9 हमें सिखाता है कि
“नागरिकता कोई सुविधा नहीं, एक जिम्मेदारी है।”
भारत आपको अपने दिल से जोड़ता है, लेकिन अगर आप किसी और देश को अपनाते हैं —
तो भारत शांति से आपको विदा करता है, पर ‘दो नावों की सवारी’ की अनुमति नहीं देता।
अब चलते हैं अनुच्छेद 10 की ओर — जो भारत की नागरिकता को लेकर एक बेहद ज़रूरी और ताक़तवर घोषणा करता है।
अनुच्छेद 10: नागरिकता बनी रहेगी, जब तक कानून न कहे कुछ और!
भारत के संविधान में अनुच्छेद 5 से लेकर अनुच्छेद 11 तक नागरिकता पर चर्चा की गई है। इनमें अनुच्छेद 10 एक संरक्षक की तरह है — जो यह सुनिश्चित करता है कि अगर आपको भारतीय नागरिकता मिल गई है, तो वो कोई अचानक छीन नहीं सकता।
अनुच्छेद 10 क्या कहता है?
“इस भाग के अधीन भारत के नागरिक माने गए या माने जाने वाले व्यक्ति उस समय तक नागरिक बने रहेंगे, जब तक कि संसद द्वारा इस विषय में कोई प्रावधान नहीं किया जाता।”
सरल भाषा में समझें:
अगर आप भारतीय नागरिक बन चुके हैं —
तो आप तब तक भारतीय नागरिक रहेंगे, जब तक संसद कोई कानून बनाकर आपकी नागरिकता छीन नहीं लेती।
यानि,
न नागरिकता रातों-रात छीन सकती है, न किसी अधिकारी की मर्जी से हटाई जा सकती है।
यह अनुच्छेद क्यों ज़रूरी है?
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में नागरिकता सिर्फ़ पहचान नहीं, अधिकारों और कर्तव्यों की चाभी है।
- यह अनुच्छेद नागरिकों को सुरक्षा देता है।
- यह बताता है कि आपकी नागरिकता केवल संविधान या संसद के बनाए कानून से ही बदली जा सकती है।
- इससे arbitrary decisions (मनमाने फैसले) की कोई जगह नहीं रह जाती।
अनुच्छेद 10 बनाम नागरिकता अधिनियम, 1955
- संविधान में अनुच्छेद 10 एक मूलभूत सिद्धांत देता है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 इस सिद्धांत को व्यावहारिक रूप देता है —
जैसे कि किन परिस्थितियों में नागरिकता छिनी जा सकती है:- धोखाधड़ी से नागरिकता ली गई हो
- देशद्रोह में शामिल पाया जाए
- किसी विदेशी देश की नागरिकता ले ली जाए
लेकिन हर बार निर्णय संसद के बनाए कानूनों और प्रक्रियाओं के तहत ही होगा — ये अनुच्छेद 10 सुनिश्चित करता है।
एक उदाहरण से समझें:
रीमा नाम की एक महिला को भारत की नागरिकता 1950 में मिली।
अब सरकार यह नहीं कह सकती कि वो “हमें पसंद नहीं, इसलिए उसकी नागरिकता रद्द करो।”
अगर रीमा ने कोई गलत काम किया हो, और वो नागरिकता अधिनियम की धाराओं के अंतर्गत आता हो,
तो तभी कानूनन तरीके से नागरिकता छीनी जा सकती है।
अनुच्छेद 10: एक नजर में
विषय | विवरण |
---|---|
अनुच्छेद संख्या | 10 |
विषय | नागरिकता की निरंतरता और सुरक्षा |
मुख्य सन्देश | जब तक संसद कानून न बनाए, नागरिकता बनी रहेगी |
महत्त्व | नागरिकों को मनमाने फैसलों से सुरक्षा |
संबंधित कानून | नागरिकता अधिनियम, 1955 |
अनुच्छेद 10 भारतीय नागरिकों के अधिकारों की ढाल है।
यह बताता है कि एक बार अगर आपको भारतीय नागरिकता मिल गई, तो
वो सिर्फ़ संसद के कानून से ही छीनी जा सकती है — न कि किसी अफसर, मंत्री या संस्था की मनमर्जी से।
यह अनुच्छेद हर भारतीय को एक भरोसा देता है —
कि आपका भारत से रिश्ता स्थिर है, मज़बूत है, और संरक्षित है।
अनुच्छेद 11: जब संविधान ने संसद से कहा – अब नागरिकता की कहानी तुम्हारे हाथ!
कल्पना कीजिए — संविधान की महाकथा अपने पहले भाग (अनुच्छेद 5 से 10) में नागरिकता की नींव रखती है। वह बताता है कि कौन है भारतीय, कौन बन सकता है, और किसे नागरिकता मिलेगी या नहीं।
लेकिन जैसे ही कहानी आगे बढ़ती है, वह एक मोड़ पर आकर रुकती है — और कहती है:
“अब आगे की कहानी संसद लिखेगी!”
यही है अनुच्छेद 11 — जो नागरिकता से जुड़े सारे नियम-कानून गढ़ने की पूरी ताकत संसद को सौंप देता है।
क्या कहता है अनुच्छेद 11?
“संसद को यह अधिकार होगा कि वह विधि द्वारा नागरिकता के अधिकारों, उसकी प्राप्ति, त्याग या वंचन से संबंधित उपबंध बना सके।”
यानि संविधान खुद संसद से कहता है —
“अब भारत में कौन नागरिक होगा, कैसे होगा, कब होगा — ये सब तू तय कर!”
इसे ऐसे समझिए:
अनुच्छेद 5 से 10 तक संविधान ने नागरिकता की Foundations तैयार कीं।
लेकिन संविधान जानता था कि भविष्य में बहुत कुछ बदलने वाला है —
बंटवारे के बाद की चुनौतियाँ, विदेशों में बसे भारतीय, दोहरी नागरिकता की मांग, अवैध घुसपैठ…
इन सब पर तुरंत और समयानुकूल कानून बनाना जरूरी था। इसलिए…
अनुच्छेद 11 = संसद को दी गई नागरिकता की खुली चाभी!
कैसे काम करता है अनुच्छेद 11?
इसके तहत संसद ने बनाया:
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955
जिसमें बताया गया—
- कौन जन्म से भारतीय है?
- विदेश में जन्म लेने वाले कब नागरिक होंगे?
- पंजीकरण या Naturalization से कैसे नागरिकता मिलेगी?
- नागरिकता कब छीन ली जाएगी?
और यही कानून आज तक भारत की नागरिकता की रीढ़ है।
अनुच्छेद 11 की ताकत:
पहलू | विवरण |
---|---|
किसे अधिकार देता है? | भारतीय संसद को |
क्या कर सकती है? | नागरिकता पाने, छोड़ने और रद्द करने के कानून बना सकती है |
मुख्य कानून | भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 |
क्यों जरूरी है? | नागरिकता जैसे विषय को समय के अनुसार बदलने का अधिकार संसद के पास रहे |
कल्पना कीजिए…
संविधान एक शिक्षक की तरह है।
वह नागरिकता के बारे में शुरुआती सबक (अनुच्छेद 5-10) खुद पढ़ाता है।
लेकिन फिर वह किताब संसद को थमा देता है और कहता है —
“अब इसे समय के साथ अपडेट करते रहना तुम्हारा काम है।”
अनुच्छेद 11 के बिना क्या होता?
सोचिए अगर यह अनुच्छेद न होता तो:
- संसद नागरिकता के नए कानून नहीं बना सकती,
- 1955 का कानून कभी नहीं बनता,
- घुसपैठ, दोहरी नागरिकता या विदेशी विवाह जैसे मसलों पर भारत हमेशा अटका रहता।
अनुच्छेद 11 भारतीय संविधान की दूरदर्शिता का प्रतीक है।
यह बताता है कि संविधान ने नागरिकता को सिर्फ लिखकर छोड़ नहीं दिया —
बल्कि उसके भविष्य को संसद के भरोसे सौंप दिया।
“नागरिकता की किताब में पहला अध्याय संविधान ने लिखा, लेकिन बाकी सभी अध्याय संसद के कलम से निकलते हैं।”
एक आकर्षक और सरल टेबुलर चार्ट, जो अनुच्छेद 5 से 11 तक की पूरी कहानी को एक नज़र में समझा देगा:
भारतीय नागरिकता (संविधान के अनुच्छेद 5 से 11) – एक नज़र में
अनुच्छेद | विषय | क्या बताता है? | मुख्य बिंदु |
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अनुच्छेद 5 | संविधान लागू होने पर नागरिकता | भारत में अधिवास रखने वाले और जन्म/वंश/निवास के आधार पर नागरिकता की मान्यता | अधिवास + जन्म / माता-पिता का जन्म / 5 साल का निवास |
अनुच्छेद 6 | पाकिस्तान से आए प्रवासियों की नागरिकता | 19 जुलाई 1948 से पहले या बाद में भारत आए लोगों की नागरिकता से जुड़ी शर्तें | प्रवेश की तिथि, रजिस्ट्रेशन, अधिवास और पुनर्वास कानून |
अनुच्छेद 7 | पाकिस्तान गए लोगों की स्थिति | जो विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए, उनकी नागरिकता पर प्रभाव | नागरिकता समाप्त, यदि बिना कानूनी अनुमति के वापस लौटे |
अनुच्छेद 8 | विदेशों में बसे भारतीयों की नागरिकता | भारत से बाहर रह रहे भारतीयों को भारतीय दूतावास में पंजीकरण द्वारा नागरिकता देने का प्रावधान | भारतीय मूल, विदेश में जन्म, रजिस्ट्रेशन के माध्यम से नागरिकता |
अनुच्छेद 9 | दोहरी नागरिकता की मनाही | अगर किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ले ली, तो वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा | भारत एकल नागरिकता को मान्यता देता है |
अनुच्छेद 10 | नागरिकता का निरंतर अधिकार | जो भारतीय संविधान के तहत नागरिक हैं, वे तब तक नागरिक बने रहेंगे जब तक संसद कुछ और न कहे | नागरिकता स्थायी है, जब तक संसद कानून द्वारा न बदले |
अनुच्छेद 11 | संसद की शक्ति | नागरिकता से संबंधित सभी नियम-कानून बनाने, बदलने, हटाने का अधिकार संसद को दिया गया | नागरिकता अधिनियम, 1955 इसी अनुच्छेद की शक्ति से बना है |