भारतीय संविधान का भाग 5 – सत्ता का असली खेल यहीं शुरू होता है!
(जहाँ सरकार बनती है, चलती है और जवाबदेह भी रहती है)
जब कोई कहता है “भारत सरकार”, तो हमारे दिमाग में क्या आता है? प्रधानमंत्री, संसद, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट?
पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन सबकी ताक़तें कहाँ से आती हैं? कौन तय करता है कि प्रधानमंत्री किसे चुनेंगे? राष्ट्रपति क्या कर सकते हैं और क्या नहीं?
जवाब है – संविधान का भाग 5।
यह भाग न तो सिर्फ काग़ज़ों का पुलिंदा है और न ही कोई सूखी कानूनी भाषा। यह है भारत सरकार का नींव-पट्टा — एक ऐसा ढाँचा जिसमें सत्ता को बाँधा गया है, उसकी सीमाएँ तय की गई हैं और जवाबदेही की नींव डाली गई है।
भाग 5 की रूपरेखा – सत्ता के चार स्तंभ
भाग 5 में चार बड़े हिस्से हैं:
- कार्यपालिका (Executive) – जहाँ सरकार का इंजन चलता है
- विधायिका (Legislature) – जहाँ कानून बनते हैं
- न्यायपालिका (Judiciary) – जहाँ संविधान की रक्षा होती है
- CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) – जहाँ सरकारी खर्चे का हिसाब होता है
अनुच्छेद 52 से 151 तक, यह पूरा सिस्टम सेट किया गया है। आइए एक-एक करके इन्हें समझते हैं, रोचक अंदाज़ में।
1. कार्यपालिका – जहाँ सत्ता चलती है, लेकिन सीमाओं में
(अनुच्छेद 52–78)
राष्ट्रपति – नाम बड़ा, काम संवैधानिक
- भारत का सबसे ऊँचा संवैधानिक पद।
- वो हर कानून पर दस्तखत करता है, हर राज्यपाल की नियुक्ति करता है, पर असल में निर्णय नहीं लेता।
- क्योंकि संविधान कहता है – राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर चलना होगा (अनुच्छेद 74)।
प्रधानमंत्री – जहाँ से असली सत्ता बहती है
- वो चेहरा, जो देश की नीतियाँ तय करता है।
- अपने मंत्रियों के साथ मिलकर फैसले लेता है और राष्ट्रपति को सलाह देता है।
- पूरी मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होती है (अनुच्छेद 75) — यानी जनता के सामने।
महान्यायवादी – सरकार का सबसे बड़ा वकील
- केंद्र सरकार का कानूनी सलाहकार (अनुच्छेद 76)।
- कोर्ट में सरकार की तरफ से बहस करता है, चाहे मुद्दा छोटा हो या राष्ट्रहित से जुड़ा।
2. विधायिका – जहाँ जनता की आवाज़ बनती है क़ानून
(अनुच्छेद 79–122)
संसद = राष्ट्रपति + राज्यसभा + लोकसभा
लोकसभा – जनता की संसद
- 543 सीटें, सीधे जनता द्वारा चुनी जाती हैं।
- यहीं पर सरकार बनती है, और यहीं गिराई भी जा सकती है।
- विपक्ष सवाल पूछता है, बहस होती है, और कानूनों को जन्म मिलता है।
राज्यसभा – स्थायित्व और विशेषज्ञता का गढ़
- राज्यों की नुमाइंदगी करता है।
- यह कभी भंग नहीं होती — हर दो साल में एक तिहाई सदस्य रिटायर होते हैं।
- यहाँ गहराई से चर्चा होती है, और कई बार कानूनों को ज़िम्मेदारी से देखा जाता है।
स्पीकर और चेयरमैन
- लोकसभा में स्पीकर का रौब चलता है, जबकि राज्यसभा में उपराष्ट्रपति होते हैं चेयरमैन।
3. न्यायपालिका – जहाँ संविधान बोलता है
(अनुच्छेद 124–147)
सुप्रीम कोर्ट – संविधान का संरक्षक
- यह अदालत सिर्फ फैसले नहीं देती, इतिहास बनाती है।
- यह देखती है कि सरकार संविधान से बाहर न निकले।
- यह नागरिकों के मूल अधिकारों की अंतिम सुरक्षा है।
मुख्य न्यायाधीश और जज
- CJI और 33 अन्य न्यायाधीश (संख्या समय के साथ बढ़ती रही है)।
- राष्ट्रपति इन्हें नियुक्त करता है, लेकिन प्रक्रिया जटिल और संतुलित होती है।
विशेष शक्तियाँ
- विवादों का निपटारा (जैसे केंद्र बनाम राज्य)
- रिट जारी करना
- संवैधानिक व्याख्या करना
- और राष्ट्रपति को सलाह देना (अनुच्छेद 143)
4. CAG – जो सरकारी खजाने की चौकीदारी करता है
(अनुच्छेद 148–151)
CAG = आंखें + कैमरा + रिपोर्ट कार्ड
- केंद्र और राज्य सरकारों के खर्चों का लेखा-जोखा रखता है।
- पता करता है कि जो पैसा संसद ने मंज़ूर किया, क्या वो सही जगह खर्च हुआ?
- इसकी रिपोर्ट संसद में पेश होती है और समय-समय पर सरकारों की नींद उड़ाती है।
तो भाग 5 इतना ज़रूरी क्यों है?
कल्पना कीजिए कि भारत सरकार एक विशाल ट्रेन है।
- राष्ट्रपति इंजन का हॉर्न है – शुरुआत उसी से होती है
- प्रधानमंत्री ड्राइवर है – दिशा तय करता है
- संसद पटरी है – जिस पर पूरी ट्रेन चलती है
- सुप्रीम कोर्ट एक ब्रेक सिस्टम है – जो सुनिश्चित करता है कि ट्रेन सीमा से बाहर न जाए
- और CAG वो टिकट चेकर है जो देखता है कि फालतू में पैसा तो नहीं उड़ाया गया
भाग 5 यह पूरी रेलगाड़ी चलाता है — संतुलित, नियंत्रित और संविधान के रास्ते पर।
सत्ता हो तो ऐसी – जवाबदेह, संतुलित और संविधान से बंधी हुई
भाग 5 सिर्फ शासन का ढाँचा नहीं है, यह भारतीय लोकतंत्र की गारंटी है।
यह बताता है कि:
- कोई भी पद इतना ताकतवर नहीं कि संविधान से ऊपर हो जाए
- और कोई भी नागरिक इतना छोटा नहीं कि संविधान उसे न सुने